(ईश्वर राठिया)
कोरबा: कोरबा मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर सतरेंगा पंचायत आश्रित ग्राम में सुदूर पहाड़ों पर रहने वाले तीन गांव के करीब 250 पहाड़ी कोरवा शुक्रवार की सुबह नीचे उतरने लगे। मतदान तो आठ बजे शुरू होना था, पर अपने पोलिंग बूथ तक पहुंचने की कठिन राह तय करने वे घर से डेढ़ घंटा पहले ही निकल गए। पहले पथरीली पहाड़ी पगडंडी से जंगल का पांच से आठ किलोमीटर सफर पैदल पूरा किया। फिर नाव से बांगो बांध का गहरा डुबान पार किया और ढाई किलोमीटर दूर बूथ पहुंचकर मतदान किया।
मतदान के लिए बमुश्किल पांच मिनट की कार्रवाई के लिए छह से 11 किलोमीटर मुश्किल व खतरों से भरा सफर तय करने का उत्साह सुदूर वनांचल ग्राम पंचायत सतरेंगा में दिखाई दिया। रामपुर विधानसभा क्षेत्र में शामिल यह गांव जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित है। इस पंचायत के तीन आश्रित ग्राम खोखराआमा, कुकरीचोली व कासीपानी बांगो बांध के गहरे डुबान के उस पार लामपहाड़ में स्थित हैं। विषम परिस्थितियों में घने जंगल व पहाड़ियों के ऊपर घास-फूस की झोपड़ी में रहने वाले पहाड़ी कोरवा, संरक्षित जनजाति के आदिवासी वर्ग में शामिल हैं। वे भी मजबूत लोकतंत्र के निर्माण में सहभागी बन परिवार समेत अपने मतदाधिकार का प्रयोग करने सतरेंगा के पोलिंग बूथ पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने अपने गांव से पहले कई किलोमीटर की पहाड़ी पगडंडियों से पैदल चलते हुए नदी तक सफर किया। उसके बाद यहां से बांध के गहरे पानी से भरे डुबान को नाव से पार किया। नदी पार कर पुनः उन्होंने डेढ़ से दो किलोमीटर पैदल चलकर मतदान किया। इस बीच उन्होंने आमाखोखरा से छह, कुकरीचोली से आठ तो कासीपानी से 11 किलोमीटर का कठिन सफर तय किया और लोकतंत्र के महाउत्सव के सहभागी बने। इस पोलिंग बूथ में कुल 1150 मतदाता हैं।
गोद में दूधमुहे बच्चे, हिचकोले खाती नाव
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मतदान करने पहुंचे कोरवा परिवारों में बड़ी संख्या में वे शिशुवती महिलाएं भी थीं, जिनके चेहरे पर थोड़ा डर और थोड़ा बल साफ देखा जा सकता था। दूधमुंहे बच्चों को गोद में लिए महिलाएं गहरी नदी में हिचकोले खाती नाव में इस भरोसे के साथ सहमी सी बैठी थीं कि एक बेहतर सरकार बनी तो कल उनके लाल का भविष्य सुनहरा होगा। ग्राम कुकरीचोली की बनदेवी कोरवा भी इन्हीं में एक थी।
अच्छी सरकार आए तो शायद बन जाए पुल
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पहाड़ी कोरवा जिन गांवों में रहते हैं, वे नदी के डुबान क्षेत्र के उस पार स्थित हैं। कुकरीचोली की बिहानी बाई व कासीपानी से अपने पुत्र प्रताप सिंह के साथ वोट देने आईं झूमकुंवर ने कहा कि वर्षों से यही मुश्किल रास्ता तय करने उस पार के चार गांव के लोग मजबूर हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि एक अच्छी और निष्पक्ष सरकार आए, तो शायद उनकी परेशानियों का हल यानी डुबान पर पुल बन जाए।
नाविक पत्थर सिंह की निःस्वार्थ सेवा
मतदाताओं को नाव में बैठाकर उस पार सतरेंगा के मतदान केंद्र पहुंचाने नाविक पत्थर सिंह कोरवा ने अहम किरदार निभाया। वे सुबह छह बजे ही अपनी नाव लेकर घाट पर पहुंच गए और वोटिंग को जाने वाले और बूथ से वापस आने वालों को शाम पांच बजे तक निःस्वार्थ डुबान पार कराते रहे। सतरेंगा के पोलिंग बूथ में आने वाले इस पहाड़ी कोरवा गांवों में खोखराआमा, कुकरीचोली, खूंटासराई, कासीपानी शामिल है।
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निर्वाचन के मापदंड के अनुसार जिले में निर्धारित 1200 की जनसंख्या वाले गांव में ही मतदान केंद्र बनाया जा सकता है। सतरेंगा के इन आश्रित गांवों में मतदाताओं के लिए निर्धारित संख्या का पैमाना पूरा नहीं हो पाने की वजह से आमाखोखरा, कुकरीचोली व कासीपानी में मतदान केंद्र नहीं बनाया जा सका। वहां के स्थानीय ग्रामीणों के लिए नाव से डुबान पार करना प्रतिदिन की आदत में शामिल है।